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Kavita Kosh से
|संग्रह=
}}
<poem>रचना यहाँ टाकाश काश मैं होती धरती पर बस उतनी
जिसके उपर सिर्फ़ आकाश बन तुम ही चल पाते
या मैं होती किसी कपास के पौधे की डोडी
जिसकी दिशा ज्ञान से तुम अपनी मंजिल पा जाते
यूँ ही सज जाते मेरे सब सपने बन के हक़ीकत
यदि मेरी ज़िंदगी के हमसफ़र कही तुम बन जाते !! इप करें</poem>