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रुपसि तेरा घन-केश पाश!<br><br>
सौरभभीना सौरभ भीना झीना गीला<br>
लिपटा मृदु अंजन सा दुकूल;<br>
चल अञ्चल से झर झर झरता झरते <br>
पथ में जुगनू के स्वर्ण-फूल;<br>
दीपक से देता बार बार<br>
उच्छ्वसित वक्ष पर चंचल है<br>
वकबक-पाँतों का अरविन्द-हार;<br>
तेरी निश्वासें छू भू को<br>
बन बन जाती मलयज बयार;<br>
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