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क्रन्दन में आहत विश्व हंसा,<br>
नयनों में दीपक से जलते,<br>
पलकों में निर्झर्णी निर्झरिणी मचली!<br><br>
मेरा पग पग संगीत भरा,<br>
छाया में मलय बयार पली,<br><br>
मैं क्षितिज भ्रकुटि भॄकुटि पर घिर धूमिल,<br>
चिंता का भार बनी अविरल,<br>
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,<br>
नव जीवन अंकुर बन निकली!<br><br>
पथ को न मलिन करता आना,<br>
पद चिन्ह न दे जाता जाना,<br>
सुधि मेरे आगम की जग में,<br>
सुख की सिहरन हो बन अंत खिली!<br><br>
विस्तृत नभ का कोई कोना,<br>
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