Changes

अभ्रकी धूप / अनिल जनविजय

17 bytes added, 15:05, 22 सितम्बर 2009
|रचनाकार=अनिल जनविजय
}}
{{KKCatKavita‎}}<Poem>
यह धूप बताशे के रंग की
 
यह दमक आतशी दर्पण की
 
कई दिनों में आज खिल आई है
 
यह आभा दिनकर के तन की
 
फिर चमक उठा गगन सारा
 
फिर गमक उठा है वन सारा
 
फिर पक्षी-कलरव गूँज उठा
 
कुसुमित हो उठा जीवन सारा
 
यह धूप कपूरी, क्या कहना
 
यह रंग कसूरी, क्या कहना
 
अक्षत-सा छींट रही मन में
 
उल्लास-माधुरी क्या कहना
 
फिर संदली धूल उड़े हलकी
 
फिर जल में कंचन की झलकी
 
फिर अपनी बाँकी चितवन से
 
मुझे लुभाए यह लड़की
(रचनाकाल : 2005)
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,039
edits