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{{KKRachna
|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
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अब मुझ को फ़ायदा हो दवा-ओ-दुआ से क्या?
वो मुँह पै कह गए--"यह मरज़ लाइलाज है"॥

इज़्ज़त कुछ और शय है, नुमाइश कुछ और चीज़।
यूँ तो यहाँ खूरोस के सर पर भी ताज है॥

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