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09:06, 25 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
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क़रीबेसुबह यह कहकर अज़ल ने आँख झपका दी।
"अरे ओ हिज्र के मारे, तुझे अब तक न ख़्वाब आया"॥
दिल उस आवाज़ के सदके़, यह मुश्किल में कहा किसने।
"न घबराना, न घबराना, मैं आया और शिताब आया॥
कोई क़त्ताल सूरत देख ली मरने लगे उस पर।
यह मौत इक ख़ुशनुमा परदे में आई या शबाब आया॥
मुअम्मा बन गया राज़ेमुहब्बत ‘आरज़ू’ यूँ ही।
वे मुझसे पूछते झिझके, मुझे कहते हिजाब आया॥
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