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Kavita Kosh से
न मंजीलें मंजिलें मिलीं कभी,
न मुश्किलें हिली हिलीं कभीं,
मगर क़दम थमें नहीं,
पहाड़ टूटकर अभी गिरा,
प्रलय पयोद भी घिरा,