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Kavita Kosh से
खींचता जाता निरंतर?-
पंथ क्या, पंथ की थ्ाकान थकान क्या,
स्वेद कण क्या,
का नहीं देते सितारे,
प्रकृति ने मंगलवार मंगल शकुन पथ
में नहीं मेरे सँवारे,
विश्व का उत्साहवर्धक
शब्द भी मैंने सुनाओ सुना कब,
किंतु बढ़ता जा रहा हूँ
उस तरु के लोक से भी
जुड़ चुका है मेरा नाता,
मैं उसे भूला नहीं तो
वह नहीं भूली मुझे भी,
मृत्यु-पथ पर भी बढ़ूँगा
मोद से यह गुनगुनाता-