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मिट्टी दीन कितनी, हाय / हरिवंशराय बच्चन
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13:42, 26 सितम्बर 2009
शून्यता एकांत मन की,
शून्यता जैसे गगन की, थाह पाती है न इसका मृत्तिका असहाय!
मिट्टी दीन कितनी, हाय!
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