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Kavita Kosh से
उसे लुटाता आया मग में,
दीनों का मैं वेश किए, पा पर दीन नहीं हँ, दाता हूँ मैं!
अग्नि देश से आता हूँ मैं!
लेकिन देर बड़ी कर आए,
कंचन तो लुट चुका, पथिक, अब लूटो राख लुटाता हूँ मैं!