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अग्नि देश से आता हूँ मैं / हरिवंशराय बच्चन
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13:55, 26 सितम्बर 2009
उसे लुटाता आया मग में,
दीनों का मैं वेश किए,
पा
पर
दीन नहीं हँ, दाता हूँ मैं!
अग्नि देश से आता हूँ मैं!
तुमनेअपने
तुमने अपने
कर फैलाए,
लेकिन देर बड़ी कर आए,
कंचन तो लुट चुका, पथिक, अब लूटो राख लुटाता हूँ मैं!
अग्नि देश से आता हूँ मैं!
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