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अब मुझको फ़ायदा हो दवा-ओ-दुआ से क्या / आरज़ू लखनवी
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17:36, 26 सितम्बर 2009
|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
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अब मुझ को फ़ायदा हो दवा-ओ-दुआ से क्या?
वो मुँह
पै
पे
कह गए--"यह
मरज़
मर्ज़
लाइलाज है"॥
इज़्ज़त कुछ और शय है, नुमाइश कुछ और चीज़।
यूँ तो यहाँ खूरोस के सर पर भी ताज है॥
</poem>
Shrddha
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