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|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
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अब मुझ को फ़ायदा हो दवा-ओ-दुआ से क्या?
वो मुँह पै पे कह गए--"यह मरज़ मर्ज़ लाइलाज है"॥
इज़्ज़त कुछ और शय है, नुमाइश कुछ और चीज़।
यूँ तो यहाँ खूरोस के सर पर भी ताज है॥
 
</poem>
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