गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
मेरा तन भूखा, मन भूखा / हरिवंशराय बच्चन
585 bytes added
,
18:40, 26 सितम्बर 2009
मेरा तन भूखा, मन भूखा!
इच्छा, सब जग का आलिंगन,
रूठा मुझसे जग का कण-कण!
मेरी फैली युग बाहों में मेरा सारा जीवन भूखा!
मेरा तन भूखा, मन भूखा!
आँखें खोले अगणित उडुगण,
फैला है सीमाहीन गगन!
मानव की अमिट विभुक्षा में क्या अग-जग का कारण भूखा?
मेरा तन भूखा, मन भूखा!
<poem>
Dkspoet
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,395
edits