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|संग्रह=एकांत-संगीत / हरिवंशराय बच्चन
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मैं जीवन में कुछ न कर सका!
 जग में अँधियारा अँधियाला छाया था, 
मैं ज्‍वाला लेकर आया था
 
मैंने जलकर दी आयु बिता, पर जगती का तम हर न सका!
 
मैं जीवन में कुछ न कर सका!
 
अपनी ही आग बुझा लेता,
 
तो जी को धैर्य बँधा देता,
 
मधु का सागर लहराता था, लघु प्‍याला भी मैं भर न सका!
 
मैं जीवन में कुछ न कर सका!
 
बीता अवसर क्‍या आएगा,
 मन जीवन पर भर पछताएगा, मरना तो होगा ही होगा मुझको पर, जब मरना था तब मर न सका! 
मैं जीवन में कुछ न कर सका!
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