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लेखक: [[रामधारी सिंह "दिनकर"]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"]]|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>लेन-देन का हिसाबलंबा और पुराना है।
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~जिनका कर्ज हमने खाया था,उनका बाकी हम चुकाने आये हैं।और जिन्होंने हमारा कर्ज खाया था,उनसे हम अपना हक पाने आये हैं।
लेन-देन का हिसाब<br>व्यापार अभी लंबा चलेगा।जीवन अभी कई बार पैदा होगाऔर पुराना है।<br><br>कई बार जलेगा।
जिनका कर्ज हमने खाया था,<br>और लेन-देन का सारा व्यापारउनका बाकी हम चुकाने आये हैं।<br>और जिन्होंने हमारा कर्ज खाया थाजब चुक जायेगा,<br>उनसे हम अपना हक पाने आये हैं।<br><br>ईश्वर हमसे खुद कहेगा -
लेन-देन का व्यापार अभी लंबा चलेगा।<br>जीवन अभी कई बार पैदा होगा<br>और कई बार जलेगा।<br><br> और लेन-देन का सारा व्यापार<br>जब चुक जायेगा,<br>ईश्वर हमसे खुद कहेगा -<br><br> तुम्हारा एक पावना मुझ पर भी है,<br>आओ, उसे ग्रहण करो।<br>अपना रूप छोड़ो,<br>मेरा स्वरूप वरण करो।<br><br/poem>
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