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लेखक: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन]][[Category:कविताएँ]][[Category:|संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवंशराय बच्चन]]}}{{KKCatKavita}}<poem>था तुम्हें मैंने रुलाया!
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~हाय, मृदु इच्छा तुम्हारी!हा, उपेक्षा कटु हमारी!था बहुत माँगा न तुमने किन्तु वह भी दे ना पाया!था तुम्हें मैंने रुलाया!
हास्नेह का वह कण तरल था, तुम्हारी मृदुल इच्छा!<br>हायमधु न था, मेरी कटु अनिच्छा!<br>न सुधा-गरल था बहुत माँगा ना तुमने किन्तु वह ,एक क्षण को भी दे ना , सरलते, क्यों समझ तुमको न पाया!<br>था तुम्हें मैंने रुलाया!<br><br>
स्नेह का वह कण तरल था,<br>मधु न था, न सुधा-गरल था,<br>एक क्षण को भी, सरलते, क्यों समझ तुमको न पाया!<br>था तुम्हें मैंने रुलाया!<br><br> बूँद कल की आज सागर,<br>सोचता हूँ बैठ तट पर -<br>क्यों अभी तक डूब इसमें कर न अपना अंत पाया!<br>था तुम्हें मैंने रुलाया!<br><br/poem>
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