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Kavita Kosh से
पूछ मत आराध्य आराध्य कैसा,
जब कि पूजा-भाव उमड़ा;
पथ मिला, मिट्टी सिधारी,
सत्य से अज्ञान बन जा।
किंतु होना, हाय, अपने आप
अग्नि को अंदर छिपाकर,