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Kavita Kosh से
काल क्रम से-
जिसके आगे झंझा रूतेरूकते,
जिसके आगे पर्वत झुकते-
प्राणों का प्यारा प्यारा धन-कंचन
सहसा अपहृत हो जाने पर
जिसको समझा सुकरात नहीं-
जिसको बुझा बूझा बुकरात नहीं-
सहसा अपहृत हो जाने पर
जिससे योगी ठग जाते हैं,
कालक्रम से, नियति-नियति से,
रह न गया जो, मिल न सका जो,