|संग्रह=आकुल अंतर / हरिवंशराय बच्चन
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{{KKCatKavita}}
कैसे भेंट तुम्हारी ले लूँ?<br>
क्या तुम लाई हो चितवन में,<br>
क्या तुम लाई हो चुंबन में,<br>
अपनी अपने कर में क्या तुम लाई,<br>
क्या तुम लाई अपने मन में,<br>
क्या तुम नूतन लाई जो मैं<br>
नभ के सूनेपन से खेला,<br>
खेला झंझा के झर-झर से;<br>
तुममें तुम में आग नहीं है तब क्या,<br>
संग तुम्हारे खेलूँ?<br>
कैसे भेंट तुम्हारी ले लूँ?<br>