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आज पागल हो गई है रात / हरिवंशराय बच्चन
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13:08, 1 अक्टूबर 2009
योग्य हँसने के यहाँ क्या,
योग्य रोने के यहाँ क्या,
-
-क्रुद्ध होने के, यहाँ क्या,
--
बुद्धि खोने के, यहाँ क्या,
व्यर्थ दोनों हैं मुझे हँस-रो हुआ यह ज्ञात।
आज पागल हो गई है रात।
</poem>
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