गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
स्वप्न भी छल, जागरण भी / हरिवंशराय बच्चन
3 bytes removed
,
08:02, 3 अक्टूबर 2009
भूत केवल जल्पना है,
औ’
भविष्यित
भविष्यत
कल्पना है,
वर्तमान लकीर भ्रम की! और है चौथी शरण भी!
स्वप्न भी छल, जागरण भी!
Dkspoet
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,333
edits