|संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवंशराय बच्चन
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कोई पार नदी के गाता!
भंग निशा की नीरवता कर,
इस देहाती गाने का स्वर,
ककडी के खेतों से उठकर, आता जमुना पर लहराता!
कोई पार नदी के गाता!
भंग निशा की नीरवता कर,<br>इस देहाती गाने का स्वर,<br>ककडी के खेतों से उठकर, आता जमुना पर लहराता!<br>कोई पार नदी के गाता!<br> होंगे भाई-बंधु निकट ही,<br>कभी सोचते होंगे यह भी,<br>इस तट पर भी बैठा कोई, उसकी तानों से सुख पाता!<br>कोई पार नदी के गाता!<br>
आज ना न जाने क्यों होता मन,<br>सुन कर यह एकाकी गायन,<br>सदा इसे मैं सुनता रहता, सदा इसे यह गाता जाता!<br>
कोई पार नदी के गाता!
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