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भाव भरा उर शब्द न आते,
पहँच पहुँच न इन तक आँसू पाते,
आओ, तृण से शुष्क धरा पर अर्थ रहित रेखाएँ खींचे!
आओ, बैठें तरु के नीचे!
</poem>
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