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कोई रोता दूर कहीं पर!
इन काली घडियों घड़ियों के अंदर,
यत्न बचाने के निष्फल कर,
काल प्रबल ने किसके जीवन का प्यारा अवलम्ब लिया हर?
कोई रोता दूर कहीं पर!
मित्र पडोसी पड़ोसी क्रंदन सुनकर,
आकर अपने घर से सत्वर,
क्या न इसे समझाते होंगे चार , दुखी का जीवन कहकर!
कोई रोता दूर कहीं पर!
</poem>
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