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जाओ कल्पित साथी मन के / हरिवंशराय बच्चन
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07:24, 4 अक्टूबर 2009
जाओ जग में भुज फ़ैलाए,
जिसमें सारा विश्व समाए,
साथी बनो जगत में जाकर
मुझसे
मुझ-से
अगणित दुखिया जन के!
जाओ कल्पित साथी मन के!
</poem>
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