{{KKRachna
|रचनाकार= रामधारी सिंह "दिनकर"
}}{{KKCatKavita}}<poem>यह कैसी चांदनी अम के मलिन तमिस्र गगन मेंकूक रही क्यों नियति व्यंगय व्यंग से इस गोधूलि-लगन में ?
मरघट में तू साज रही दिल्ली कैसे श्रृंगार?
यह बहार का स्वांग अरी इस उजड़े चमन में!
इस उजाड़ निर्जर निर्जन खंडहर मेंछिन्न -भिन्न उजड़े इस घर मे
तुझे रूप सजाने की सूझी
इस सत्यानाश प्रहर में!
डाल -डाल पर छेड़ रही कोयल मर्सिया-तराना,
और तुझे सूझा इस दम ही उत्सव हाय, मनाना;
अन्न नहीं, अवलम्ब प्राण का
गम, आंसू आँसू या गंगाजल का;</poem>