भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
|संग्रह=ताप के ताये हुए दिन / त्रिलोचन
}}
{{KKCatNavgeet}}<poem>
सीधी है भाषा बसन्त की
 कभी आंख आँख ने समझी कभी कान ने पायीपाई
कभी रोम-रोम से
 प्राणों में भर आयीआई
और है कहानी दिगन्त की
 
नीले आकाश में
 नयी नई ज्योति छा गयीगई
कब से प्रतीक्षा थी
 वही बात आ गयीगई
एक लहर फैली अनन्त की ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits