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|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
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नालाँ ख़ुद अपने दिल से हूँ दरबाँ को क्या कहूँ।
जैसे बिठाया गया है, कोई पाँव तोड़ के॥

क्या जाने टपके आँख से किस वक़्त खू़नेदिल।
आँसू गिरा रहा हूँ जगह छोड़-छोड़ के॥

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