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{{KKRachna
|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
}}
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क्यों उसकी यह दिलजोई दिल जिसका दुखाना है।
ठहरा के निशाने को क्या तीर लगाना है॥
अंदाज़े-तग़ाफ़ुल पर दिल चोट तो खा बैठा।
अब उनकी निशानी को, उनसे भी छुपाना है॥
कमताक़तिये-नालाँ अश्कों से मदद ले लें।
बेरब्त कहानी में, पेबन्द लगाना है॥
</poem>
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क्यों उसकी यह दिलजोई दिल जिसका दुखाना है।
ठहरा के निशाने को क्या तीर लगाना है॥
अंदाज़े-तग़ाफ़ुल पर दिल चोट तो खा बैठा।
अब उनकी निशानी को, उनसे भी छुपाना है॥
कमताक़तिये-नालाँ अश्कों से मदद ले लें।
बेरब्त कहानी में, पेबन्द लगाना है॥
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