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माँ मेरे अकेलेपन के बारे में सोच रही है<br />
पानी गिर नहीं रहा<br />
पर गिर सकता है किसी भी समय<br />
मुझे बाहर जाना है<br />
और माँ चुप है कि मुझे बाहर जाना है<br />
<br />
यह तय है<br />
कि मैं बाहर जाउंगा तो माँ को भूल जाउंगा<br />
जैसे मैं भूल जाउंगा उसकी कटोरी<br />
उसका गिलास<br />
वह सफ़ेद साडी जिसमें काली किनारी है<br />
मैं एकदम भूल जाउँगा<br />
जिसे इस समूची दुनियाँ में माँ<br />
और सिर्फ मेरी माँ पहनती है<br />
<br />
उसके बाद सर्दियाँ आ जायेंगी<br />
और मैने देखा है कि सर्दियाँ जब भी आती हैं<br />
तो माँ थोडा और झुक जाती है<br />
अपनी परछाई की तरफ<br />
ऊन के बारे में उसके विचार<br />
बहुत सख्त है<br />
मृत्यु के बारे में बेहद कोमल<br />
पक्षियों के बारे में<br />
वह कभी कुछ नहीं कहती<br />
हाँलाकि नींद में<br />
वह खुद एक पक्षी की तरह लगती है<br />
<br />
जब वह बहुत ज्यादा थक जाती है<br />
तो उठा लेती है सुई और तागा<br />
मैंने देखा है कि जब सब सो जाते हैं<br />
तो सूई चलाने वाले उसके हाँथ<br />
देर रात तक<br />
समय को धीरे धीरे सिलते हैं<br />
जैसे वह मेरा फ़टा हुआ कुर्ता हो<br />
<br />
पिछले साठ बरसों से<br />
एक सूई और तागे के बीच<br />
दबी हुई है माँ<br />
हालांकि वह खुद एक करघा है<br />
जिस पर साठ बरस बुने गये हैं<br />
धीरे धीरे तह पर तह<br />
खूब मोटे और गझिन और खुरदुरे<br />
साठ बरस<br />
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