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पुष्प की अभिलाषा / माखनलाल चतुर्वेदी
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04:52, 6 अक्टूबर 2009
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चाह नहीं मैं सुरबाला के
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर,
है
हे
हरि, डाला जाऊँ
चाह नहीं, देवों के शिर पर,
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ!
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