भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
समय के समर्थ अश्व मान लो
 
आज बन्धु! चार पाँव ही चलो।
 
छोड़ दो पहाड़ियाँ, उजाड़ियाँ
 
तुम उठो कि गाँव-गाँव ही चलो।।
 
 
रूप फूल का कि रंग पत्र का
 
बढ़ चले कि धूप-छाँव ही चलो।।
 
समय के समर्थ उश्व मान लो
 
आज बन्धु! चार पाँव ही चलो।।
 
 
वह खगोल के निराश स्वप्न-सा
 
तीर आज आर-पार हो गया
 
आँधियों भरे अ-नाथ बोल तो
 
आज प्यार! क्यों उदार हो गया?
 
इस मनुष्य का ज़रा मज़ा चखो
 
किन्तु यार एक दाँव ही चलो।।
 
समय के समर्थ अश्व मान लो
 
आज बन्धु ! चार पाँव ही चलो।।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits