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मन धक-धक की माला गूँथे / माखनलाल चतुर्वेदी
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15:45, 6 अक्टूबर 2009
तब ज्वारों की भैरव-ध्वनि की
मैंने अपनी थैली खोली!
मेरी काली घहराई को
विद्युत चमका कर शरमाया
क्षणिक सजीले, इसीलिए मैं
अपने हीरे मोती लाया!
आज प्राण के शेष नाग पर
माधव होकर पौढ़ो राजा!
मेरे चन्द खिलौना जी के
श्यामल सिंहासन पर आ जा!
</poem>
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