Changes

मेरा जीवन / रघुवीर सहाय

2,989 bytes added, 03:03, 7 अक्टूबर 2009
नया पृष्ठ: मेरा एक जीवन है<br /> उसमें मेरे प्रिय हैं, मेरे हितैषी हैं, मेरे गुरु...
मेरा एक जीवन है<br />
उसमें मेरे प्रिय हैं, मेरे हितैषी हैं, मेरे गुरुजन हैं<br />
उसमें कोई मेरा अनन्यतम भी है<br />
<br />
पर मेरा एक और जीवन है<br />
जिसमें मैं अकेला हूँ<br />
जिस नगर के गलियारों, फुटपाथ, मैदानों में घूमा हूँ<br />
हँसा खेला हूँ<br />
उसके अनेक हैं नागर, सेठ, म्युनिस्पलम कमिश्नर, नेता<br />
और सैलानी, शतरंजबाज और आवारे<br />
पर मैं इस हाहाहूती नगरी में अकेला हूँ।<br />
<br />
देह पर जो लता सी लिपटी<br />
आँखों में जिसनें कामना से निहारा<br />
दुख में जो साथ आये<br />
अपने वक्त पर जिन्होंने पुकारा<br />
जिनके विश्वास पर वचन दिये, पालन किया<br />
जिनका अंतरंग हो कर उनके किसी भी क्षण में मैं जिया<br />
<br />
वे सब सुहृद है, सर्वत्र हैं, सर्वदा हैं<br />
पर मैं अकेला हूँ।<br />
<br />
सारे संसार में फैल जायेगा एक दिन मेरा संसार<br />
सभी मुझे करेंगे-दो चार को छोड़-कभी न कभी प्यार<br />
मेरे सृजन, कर्म-कर्तव्य, मेरे आश्वासन, मेरी स्थापनायें<br />
और मेरे उपार्जन, दान-व्यय, मेरे उधार<br />
एक दिन मेरे जीवन को छा लेंगे- ये मेरे महत्व। <br />
डूब जायेगा तंत्रीनाद कवित्त रस में, राग में रंग में<br />
मेरा यह ममत्व<br />
जिससे मैं जीवित हूँ।<br />
मुझ परितप्त को तब आ कर वरेगी मृत्यु - मैं प्रतिकृत हूँ।<br />
<br />
पर मैं फिर भी जियुँगा<br />
इसी नगरी में रहूँगा<br />
रूखी रोटी खाउँगा और ठंड़ा पानी पियूँगा<br />
क्योंकि मेरा एक और जीवन है और उसमें मैं अकेला हूँ।<br />
750
edits