Changes

|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
}}
{{KKCatKavita}}</poem>
गीत गाने दो मुझे तो,
 
वेदना को रोकने को।
 
चोट खाकर राह चलते
 
होश के भी होश छूटे,
 
हाथ जो पाथेय थे, ठग-
 
ठाकुरों ने रात लूटे,
 
कंठ रूकता जा रहा है,
 
आ रहा है काल देखे।
 
भर गया है ज़हर से
 
संसार जैसे हार खाकर,
 
देखते हैं लोग लोगों को,
 
सही परिचय न पाकर,
 
बुझ गई है लौ पृथा की,
 
जल उठो फिर सींचने को।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,395
edits