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00:35, 9 अक्टूबर 2009 दूल्ह राम, सीय दुलही री।<br />
घन-दामिन-बर बरन, हरन-मन सुन्दरता नख-शिख निबही री॥<br />
ब्याह-विभूषन-बसन-बिभूषित, सखि-अवली लखि ठगि सी रही री॥<br />
जीवन-जनम-लाहु लोचन फल है इतनोइ, लह्यो आजु सही री॥<br />
सुखमा-सुरभि सिंगार-छीर दुहि, मयन अमिय मय कियो है दही री॥<br />
मथि माखन सिय राम सँवारे, सकल भुवन छवि मनहुँ मही री॥<br />
तुलसिदास जोरी देखत सुख सोभा, अतुल न जाति कही री॥<br />
रूप रासि बिरची बिरंची मनो, सिला लवनि रति काम लही री॥<br />