भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हँसी की चोट / देव

564 bytes added, 02:53, 9 अक्टूबर 2009
नया पृष्ठ: साँसनि ही सौं समीर गयो अरु, आँसुन सी सब नीर गयो ढरि।<br /> तेज गयो गुन ...
साँसनि ही सौं समीर गयो अरु, आँसुन सी सब नीर गयो ढरि।<br />
तेज गयो गुन लै अपनो, अरु भूमि गई तन की तनुता करि॥<br />
'देव' जियै मिलिबेहि की आस कि, आसहू पास अकास रह्यो भरि।<br />
जा दिन तै मुख फेरि हरै हँसि हेरि हियो जु लियो हरि जू हरि॥<br />
750
edits