{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=देव}}<poem>पायनि नूपुर मंजु बजे, कटि किंकिनि की धुनि की मधुराई।<br />साँवरे अंग लसे पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।<br /> माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुख चंद जुन्हाई।<br />जै जग मन्दिर दीपक सुन्दर, श्री ब्रज दूलह देव सहाई॥<br /poem>