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{{KKRachna
|रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
|संग्रह=अनामिका / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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<poem>कुछ न हुआ, न हो।<br>होमुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल<br>::::पास तुम रहो!<br>मेरे नभ के बादल यदि न कटे-<br>:::चन्द्र रह गया ढका,<br>तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे<br>ले :::लेश गगन-भास का,<br>रहेंगे अधर हँसते, पथ पर, तुम<br>:::हाथ यदि गहो।<br>बहु -रस साहित्य विपुल यदि न पढ़ा<br>--:::मन्द सबों ने कहा,<br>मेरा काव्यानुमान यदि न बढ़ा<br>--:::ज्ञान , जहाँ का रहा,<br>रहे, समझ है मुझमें पूरी, तुम<br>:::कथा यदि कहो।<br><br/poem>