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{{KKRachna
|रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
|संग्रह=अनामिका / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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<poem>:::(गीत)बहुत दिनों बाद खुला आसमान!<br>निकली है धूप, खुश हुआ जहान!<br><br> :दिखी दिशाएँ, झलके पेड़,<br>चरने को चले ढोर--गाय-भैंस-भेड़,<br>:खेलने लगे लड़के छेड़-छेड़,<br>--:लड़कियाँ घरों को कर भासमान!<br><br> :लोग गाँव-गाँव को चले, <br>कोई बाजार, कोई बरगद के पेड़ के तले, <br>:जाँघिया-लँगोटा ले , सँभले,<br>:तगड़े-तगड़े सीधे नौजवान!<br><br> :पनघट में बड़ी भीड़ हो रही,<br>नहीं ख्याल आज कि भीगेगी चूनरी,<br>:बातें करती हैं वे सब खड़ी,<br>:चलते हैं नयनों के सधे बाण!<br/poem>
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