भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'''4
 
मुसाफ़िरों के लिए मंज़िलों की तलाश में
जाने कहाँ होगा इस वक़्त वह कॉमरेड नछत्तर सिंह
एक सार्वजनिक संज्ञा से जु़ड़ा-- ’टैक्सी !’
 
 
’टैक्सी !’ नछत्तर सिंह को इस नाम से पुकारने वाले
नहीं जानते कि रोज़ सूरज को रौंदता है वह
उसकी रोशनी के साथ
उससे कहीं ज़्यादा चमकते हुए
कहीं ज़्यादा ऊँचे उद्देश्यों और इरादों के साथ
ज़्यादा बेहतर दुनिया के निर्माण के लिए
दिन का पहला पानी पीने से लेकर
रात का आख़िरी आशीर्वाद देने तक
अपने पूरे पितापन के साथ
जीवित पंजाब की तरह
जिसे नक्शे की बेजान लकीरें
और
मज़हबी बारूद से खेलती सियासत
तक्सीद नहीं कर सकीं
 
’टैक्सी !’ अपने इस नए और सार्वजनिक नाम में
मुकम्मिल हिन्दुस्तान बन गया है
पंजाब से आकर बंगाल में बस जाने वाला वह
कि अपना कॉमरेड नछत्तर सिंह
समुद्र के भीतर से निकलते हुए
सूरज की छाती पर खड़ा
दिन के पहले पानी और रात के आख़िरी आशीर्वाद के साथ।
 
'''5.
 
गाँव से शहर और शहर से फिर जिस्म में
हर लम्हा तब्दील होने वाला यह इन्सान
आदमीयत के क़त्ल में कभी शरीक नहीं हुआ।
 
ज़बान और मज़हब से बड़ी चीज़ के लिए
टैक्सी के चक्कों पर अपने दिमाग़ को तैनात कर
स्टीयरिंग को हमेशा अपने हाथ की ज़िम्मेदारी पर रखता है
ख़ून और झण्डे के रंगों को
बे-फ़र्क़ बनाता हुआ...
 
अपने कुर्ते और पजामे और पग्गड़ में
एक ज़िन्दा तवारीख़ का सफ़ह कि एक आदमी
सब से ऊपर एक गाता हुआ जंगल
जागता हुआ पहाड़
हँसता हुआ दरिया
बहता अपने अन्दाज़ में
बढ़ता अपनी मंज़िल की ओर
किसी भी जगह समुद्र बन जाने को तैयार
अपनी आग को अपने भीतर बरकरार रखता
कि मर्यादा संयम की सीमा में
अर्थवती है नछत्तर सिंह की मुस्कराहट की तरह
उसके होठों के भीतर
 
 
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits