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|रचनाकार=अटल बिहारी वाजपेयी
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जीवन की ढलने लगी सांझ
उमर घट गई
डगर कट गई
जीवन की ढलने लगी सांझ।
सपनों में मीत<br>बिखरा संगीत<br>ठिठक रहे पांव और झिझक रही झांझ।<br>
जीवन की ढलने लगी सांझ।
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