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|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
}}
{{KKCatKavita}}<poem>आज कहां वह पूर्ण पुरातन, वह सुवर्ण का काल?
भूतियों का दिगंत छबि जाल,
ज्योति चुम्बित जगती का भाल?
निखिल उत्थान, पतन!
अहे वासुकि सहस्र फन!
</poem>