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मोह / सुमित्रानंदन पंत

26 bytes added, 06:45, 13 अक्टूबर 2009
{{KKRachna
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
}}{{KKCatKavita}}<poem>छोड़ द्रुमों की मृदु छाया
तोड़ प्रकृति से भी माया
कैसे बहाला दूँ जीवन?
भूल अभी से इस जग को!
</poem>
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