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|संग्रह= गुंजन / सुमित्रानंदन पंत
}}
{{KKCatKavita}}<poem>सागर की लहर लहर में<br>है हास स्वर्ण किरणों का,<br>सागर के अंतस्तन में<br>अवसाद अवाक् कणों का !<br><br>
यह जीवन का है सागर,<br>जग-जीवन का है सागर,<br>प्रिय-प्रिय विषाद रे इसका<br>प्रिय प्रि’ आह्लाद रे इसका !<br><br>
जग जीवन में हैं सुख-दुख,<br>सुख-दुख में है जग जीवन;<br>हैं बँधे बिछोह-मिलन दो<br>देकर चिर स्नेहालिंगन !<br><br>
जीवन की लहर-लहर से<br>हँस खेल-खेल रे नाविक !<br>जीवन के अंतस्तल में<br>नित बूड़-बूड़ रे भाविक ! <br><br>
(फरवरी,1932)
</poem>
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