Changes

स्त्री / सुमित्रानंदन पंत

82 bytes added, 13:53, 10 जुलाई 2013
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKPrasiddhRachna}}
<poem>
यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर, तो वह नारी के उर के भीतर,::दल पर दल खोल ह्रदय हृदय के अस्तर::जब बिठलाती प्रसन्न होकर::वह अमर प्रणय के शतदल पर !
मादकता जग में कहीं अगर, वह नारी अधरों में सुखकर,::क्षण में प्राणों की पीड़ा हर,नवजीवन ::नव जीवन का दे सकती वर::वह अधरों पर धर मदिराधरमदिराधर।
यदि कहीं नरक है इस भू पर, तो वह भी नारी के अन्दर,
::वासनावर्त में दल डाल प्रखर::वह अंध गर्त में चिर दुस्तर::नर को धेकेल ढकेल सकती सत्वर !
</poem>
रचनाकाल: जनवरी’ ४०
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,147
edits