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आँसू ढ्लते, विरह-ताप से
तप्त गोपिकाओं के श्वास;
 
नीरज-नील नयन, बिम्बाधर
जिस युवती के अति सुकुमार;
उमड़ रहा जिसकी आंखों पर
मृदु भावों का पारावार,
 
बढ़ा हाथ दोनों मिलने को
चलती प्रकट प्रेम-अभिसार,
प्राण-पखेरू, प्रेम-पींजरा,
बन्द, बन्द है उसका द्वार!
 
झेरी झररर-झरर, दमामें
घोर नकारों की है चोप,
कड़-कड़-कड़ सन-सन बन्दूकें,
अररर अररर अररर तोप,
 
धूम-धूम है भीम रणस्थल,
शत-शत ज्वालामुखियाँ घोर
आग उगलतीं, दहक दहक दह
कपाँ रहीं भू-नभ के छोर।
 
फटते, लगते हैं छाती पर
घाती गोले सौ-सौ बार,
उड़ जाते हैं कितने हाथी,
कितने घोड़े और सवार।
 
थर-थर पृथ्वी थर्राती है,
लाखों घोड़े कस तैयार
करते, चढ़ते, बढ़ते-अड़ते
झुक पड़ते हैं वीर जुझार।
 
भेद धूम-तल--अनल, प्रबल दल
चीर गोलियों की बौछार,
धँस गोलों-ओलों में लाते
छीन तोक कर वेड़ी मार;
 
आगे आगे फहराती है
ध्वजा वीरता की पहचान,
झरती धारा--रुधिर दण्ड में
अड़े पड़े पर वीर जवान;
 
साथ साथ पैदल-दल चलता,
रण-मद-मतवाले सब वीर,
छुटी पताका, गिरा वीर जब,
लेता पकड़ अपर रणधीर,
 
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