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हमसे मुसाफ़िरों का सफ़र इंतज़ार है / बशीर बद्र
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22:53, 14 अक्टूबर 2009
किस रोशनी के शहर से गुज़रे हैं तेज़ रौ
नीले समन्दरों पे सुनहरा
ग़ु
बार
ग़ुबार
है
आई निदा वो उड़ते सितारे इधर मुझे
इन बदलियों के पीछे कोई कोहसार है
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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