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यूँ ही बेसबब बे-सबब न फिरा करो, कोई शाम घर में भी रहा करो <br>वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके -चुपके पढ़ा करो <br><br>
कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से <br>
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो <br><br>
मुझे इश्तहार -सी लगती हैं, ये मोहब्बतों की कहानियाँ <br>
जो कहा नहीं वो सुना करो, जो सुना नहीं वो कहा करो <br><br>
जो मैं बन-सँवर के कहीं चलूँ, मेरे साथ तुम भी चला करो <br><br>
ये ख़िज़ा ख़िज़ाँ की ज़र्द-सी शाम में, जो उदास पेड़ के पास है <br>ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आंसुओं आँसुओं से हरा करो <br><br>
नहीं बेहिजाब बे-हिजाब वो चाँद -सा कि नज़र का कोई असर नहीं <br>
उसे इतनी गर्मी-ए-शौक़ से बड़ी देर तक न तका करो <br><br>