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आओ, हम अपना मन टोवें / सुमित्रानंदन पंत
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04:07, 17 अक्टूबर 2009
{{KKRachna
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>आओ, अपने मन को टोवें!
व्यर्थ देह के सँग मन की भी
निर्धनता का बोझ न ढोवें।
नवोन्मेष जन-भू जीवन में,
राग द्वेष के, प्रकृति विकृति के
युग युग के घावों को धोवें!</poem>
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