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नववर्ष / सोहनलाल द्विवेदी

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{{KKRachna
|रचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी
}} {{KKCatKavita}}<poem>स्वागत! जीवन के नवल वर्ष<br>आओ, नूतन-निर्माण लिये,<br>इस महा जागरण के युग में<br>जाग्रत जीवन अभिमान लिये;<br><br>
दीनों दुखियों का त्राण लिये<br>मानवता का कल्याण लिये,<br>स्वागत! नवयुग के नवल वर्ष!<br>तुम आओ स्वर्ण-विहान लिये।<br><br>
संसार क्षितिज पर महाक्रान्ति<br>की ज्वालाओं के गान लिये,<br>मेरे भारत के लिये नई<br>प्रेरणा नया उत्थान लिये;<br><br>
मुर्दा शरीर में नये प्राण<br>प्राणों में नव अरमान लिये,<br>स्वागत!स्वागत! मेरे आगत!<br>तुम आओ स्वर्ण विहान लिये!<br><br>
युग-युग तक पिसते आये<br>कृषकों को जीवन-दान लिये,<br>कंकाल-मात्र रह गये शेष<br>मजदूरों का नव त्राण लिये;<br><br>
श्रमिकों का नव संगठन लिये,<br>पददलितों का उत्थान लिये;<br>स्वागत!स्वागत! मेरे आगत!<br>तुम आओ स्वर्ण विहान लिये!<br><br>
सत्ताधारी साम्राज्यवाद के <br> मद का चिर-अवसान लिये,<br>दुर्बल को अभयदान,<br>भूखे को रोटी का सामान लिये;<br><br>
जीवन में नूतन क्रान्ति<br>क्रान्ति में नये-नये बलिदान लिये,<br>स्वागत! जीवन के नवल वर्ष<br>आओ, तुम स्वर्ण विहान लिये! <br><br/poem>
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